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Chamatkari Thali - Hindi Kahani

चमत्कारी थाली – Hindi story of a miracle thali

यह kahani है एक चमत्कारी थाली की। किसी गांव में साईराम नाम का एक साधु रहा करता था। बड़ा ही भला आदमी था। अपने साथ बुराई करने वालों के साथ भी वो हमेशा भलाई ही करता था। गांव के किनारे एक छोटी सी कुटिया में अकेला ही रहता, अपने घर आने वालों की खूब खातिरदारी करता, ध्यान रखता और अच्छा अच्छा खाना खिलाता था।

गर्मियों के दिन थे, खूब गर्मी पड़ रही थी और लू चल रही थी। एक आदमी दोपहर में कहीं जा रहा था लेकिन ज्यादा गर्मी होने और लू लगने से वह साईराम की कुटिया के बाहर ही बेहोश होकर गिर पड़ा। साईराम ने जैसे ही देखा कि उस की कुटिया के बाहर कोई बेहोश पड़ा है तो वो उसे तुरंत अंदर ले गया और उसकी सेवा में लग गया। पानी पिलाया, सर पर गीला कपड़ा रखा और हाथ के पंखे से काफी देर तक हवा की, तब जाकर उसे होश आया।

होश आने पर उस आदमी ने साईराम से कहा की मैं बहुत भूखा हूँ, कृपया करके कुछ खाने को दे दीजिए। साईराम ने कहा ठीक है मुझे थोड़ा सा समय दीजिए। कुछ ही मिनट में साईराम ने बहुत बढ़िया बढ़िया ताजे पकवान खाने के लिए परोस दिए। उसने ताबड़तोड़ खाना खाया और फटाफट सारे पर पकवान चट कर गया। वह आदमी एक चोर था जो दोपहर में सुनसान देखकर चोरी करने के लिए निकला था। खाना खाने के बाद चोर को इस बात की हैरानी हुई कि साईराम ने इतनी जल्दी खाना कैसे तैयार कर लिया।

उसने साईराम से पूछा – महाराज जी यह बताइए आपने इतने कम समय में खाना कैसे तैयार कर लिया? साईराम ने चोर को बताया कि मेरे पास एक चमत्कारी थाली है। इस थाली की मदद से मैं पल भर में जो भी जी चाहे खाने के लिए बना सकता हूँ। चोर ने हैरान होकर पूछा – क्या आप मुझे वह थाली दिखा सकते हैं? मैं यह सब अपनी आंखों से देखना चाहता हूँ। साईराम अंदर गया, एक थाली लाकर चोर के आगे रखी और कहा – मुझे कैले चाहियें । थाली तुरंत केलों से भर गई। चोर हैरान रह गया और उसके मन में थाली के लिए लालच पैदा हो गया। उसने साधु से पूछा – मान्यवर क्या मैं आज रात आपकी कुटिया में रुक सकता हूं? साधु एकदम से राजी हो गया। जब साधु गहरी नींद में सो रहा था तो चोर ने थाली उठाई और वहां से चंपत हो गया।

थाली चुराकर चोर सोच रहा था कि अब तो मेरी मौज ही मौज है, जो भी जी चाहे थाली से मांग लूंगा। उसने थाली अपने घर में रखी और थाली से कहा मुझे टंगड़ी कबाब चाहिए। मगर थाली में कुछ नहीं आया। फिर उसने कहा मुझे मलाई चाप चाहिए। थाली अभी खाली थी। चोर ने कहा सेब ला के दो। थाली में फिर भी कुछ नहीं आया। चोर को जितनी भी खाने की चीजों के नाम याद थे उसने सब बोल डालें लेकिन थाली खाली की खाली ही रही। चोर तुरंत भागता हुआ थाली लेकर साधु के पास गया और बोला – महात्मा, भूल से मैं आपका बर्तन अपने साथ ले गया। मुझे माफ कीजिए अपना बर्तन वापस ले लीजिए। साईराम बिल्कुल नाराज नहीं हुआ। बर्तन लेकर साईराम ने उसी समय कई अच्छे पकवान बर्तन से देने को कहा और बर्तन में तुरंत वह आ गए। साईराम ने चोर को एक बार फिर बढ़िया खाना खिलाया। चोर फिर हैरान हो गया और अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाया। उसने साधु से पूछा- महाराज जब यह बर्तन मेरे पास था तब इसने कोई काम नहीं किया। मैंने इससे बहुत सारे पकवान मांगे मगर इसने मुझे कुछ नहीं दिया। साधु ने कहा – भाई देखो जब तक मैं जिंदा हूं तब तक यह बर्तन किसी और के काम नहीं आ सकता, मेरे मरने के बाद ही कोई और इसे उपयोग कर पाएगा। बर्तन के चमत्कार का भेद पाकर चोर मन ही मन बहुत खुश हुआ, सोच रहा था कि अब तो मैं इस महात्मा का खात्मा करके बर्तन का फायदा उठाऊंगा।

अगले दिन चोर फिर साधु के घर आया और साथ में घर से खीर बनाकर लाया। वह बोला – महाराज आपने मेरी इतनी सेवा की है। मुझे दो बार बहुत लाजवाब स्वादिष्ट पकवान खिलाए हैं इसलिए मैं भी आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ। मैं आपके लिए खीर लाया हूँ। कृपया आप स्वीकार कर लीजिए। साधु ने बिना किसी संकोच के चोर की दी हुई खीर खाई और चोर को धन्यवाद किया। कहा – तुम्हारी खीर बहुत ही स्वादिष्ट बनी है। चोर खीर में जहर मिला कर लाया था। खीर खिलाकर चोर वापस अपने घर चला गया। रात होने पर वापस साधु की कुटिया में आया, थाली को फिर से चुराने के लिए। उसे पक्का यकीन था की जहर से अब तक तो साधु का काम तमाम हो चुका होगा। चोर जैसे ही थाली की ओर बढ़ा तो उसे किसी चीज से ठोकर लगी। आवाज सुनकर साईराम ने आंखें खोली और उठकर चारपाई पर बैठ गया। बोला – कौन है भाई? चोर की हैरानी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। वह बड़ी हैरानी से बोला – महाराज आप अभी तक जीवित हैं? साधु बोला – क्यों भाई तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं जीवित नहीं हूँ? चोर ने कहा – मैंने दोपहर में आपको जो खीर खिलाई थी उसमें बहुत तेज जहर मिला हुआ था। मैं तो यही सोच रहा था कि ज़हर के असर से आप मर चुके होंगे। साधु ने कहा – देखो भाई मैं निस्वार्थ भाव से लोगों की खूब सेवा करता हूँ और सच्ची निष्ठा से भगवान का जप भी करता हूँ, साथ ही योगाभ्यास भी करता हूँ। इसलिए मुझे यह आशीर्वाद प्राप्त है की कितना भी तेज जहर क्यों ना हो मैं उसे आसानी से पचा सकता हूँ। किसी भी जहर का मुझ पर कोई असर नहीं होगा। चोर ने निराश होकर कहा – महाराज मैं तो आपको मार कर आप के पतीले का लाभ लेना चाहता था लेकिन मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।  संत ने कहा – भाई मैं इसमें क्या कर सकता हूँ, तुम्हारी किस्मत ही अच्छी नहीं है। बोलो अगर भूख लगी हो तो खाने का प्रबंध करूँ? चोर बड़ा शर्मिंदा हुआ, बोला – महाराज मैं तो आपको धोखे से मारना चाहता था मगर फिर भी आपने मुझसे नफरत नहीं की। उल्टा आप तो मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार कर रहे हैं। यह बात मुझे बहुत ही अजीब सी लग रही है। साधु ने कहा – भाई इसमें क्या अजीब बात है, अच्छाई करना मेरी आदत है बुराई करना तुम्हारी आदत है। तुम बुराई करना नहीं छोड़ पा रहे मैं अच्छाई करना नहीं छोड़ सकता। तुम अपनी आदत से लाचार हो मैं अपनी आदत से लाचार हूँ।

इस kahani से यह शिक्षा मिलती है कि हमें शुरू से ही अच्छी आदतें डालनी चाहियें, बुरी आदत लग जाए तो उसका छूटना बहुत मुश्किल होता है!

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