यह कहानी है मुल्ला नसरुद्दीन की। मुल्ला नसरुद्दीन का दिमाग बहुत ही कमाल का था। एकबार वो बग़दाद के बाजार से गुजर रहा था तभी उसने एक सराय के अंदर शोरगुल सुना और माजरा जानने के लिए वो अंदर चला गया। वहाँ मुल्ला नसरुद्दीन ने देखा एक मोटा सुर्ख मुँह वाला सराय का मालिक एक भिखारी की गर्दन पकड़कर झकझोर रहा था। सराय का मालिक उस भिखारी से पैसे वसूलना चाहता था जबकि भिखारी कह रहा था की उसके पास देने के लिए पैसे नहीं हैं।
यह देखकर मुल्ला नसरुद्दीन से रहा नहीं गया और उसने पूछा – “क्योँ भाइयों यह शोरगुल कैसा है, तुम लोग आपस में झगड़ क्यों रहे हो? मुझे बताओ कि आखिर माजरा क्या है?” सराय का मालिक यह सुनकर जोर से बोला – “यह आवारा भिखमंगा, खुदा करे इसकी आँतों में कीड़े पड़ें। यह मेरी दूकान में उस वख्त घुस आया जब में अपने सींक कबाब भून रहा था, तभी इसने अपनी जेब से रोटी का टुकड़ा निकाला और वो टुकड़ा इसने मेरी कबाब की अंगीठी पर तब तक सेंका जब तक की मेरे सींक कबाब की सारी खुशबू इसकी रोटी में न समागई। इसकी रोटी अच्छी तरह मुलायम और खूब जायकेदार होगई। इसने अपनी वो रोटी मजे से खाई। मैंने इससे अपनी अंगीठी पर रोटी सेंकने की कीमत मांगी तो यह भिखारी कीमत देने से साफ़ इंकार कर रहा है। अल्लाह करे इसके दांत झड़जाएँ और इसकी खाल उधड़कर ज़मीन पर गिर जाए।”
मुल्ला नसरुद्दीन ने यह सबकुछ गौर से सुना, फिर भिखारी से पूछा – “क्या यह सब सच है?” भिखारी बेचारा कुछ बोल न सका और डरा हुआ सा खड़ा हुआ मुल्ला नसरुद्दीन की ओर देखता रहा। मुल्ला नसरुद्दीन ने भिखारी से कहा – “क्या तुम्हे इतना भी पता नहीं की किसी की चीज की कीमत चुकाए बिना उसे लेना बहुत बड़ा जुर्म है?” यह सुनकर सराय का मालिक बहुत खुश हुआ और कहने लगा “अबे भिखमंगे तूने कुछ सुना या नही? इस नेक बन्दे की बात पर ध्यान दे।”
मुल्ला नसरुद्दीन ने भिखारी से पूछा – ” क्या तुम्हारे पास इसे देने के लिए पैसे हैं ?” भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला और उसमें से कुछ सिक्के निकाल कर मुल्ला नसरुद्दीन के हाथों पर रख दिए। यह देखते ही सराय के मालिक ने पैसे लेने के लिए अपना मोटा चर्बीदार पंजा आगे बढ़ाया लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे रोकते हुए कहा – ” ठहरिए जनाब, पहले जरा अपने कानों को मेरे पास लाइये।” सराय के मालिक ने जैसे ही अपने कानों को मुल्ला नसरुद्दीन के करीब किया मुल्ला नसरुद्दीन ने भिखारी के सिक्कों को जोर जोर से खनखनाना शुरू कर दिया। उसने थोड़ी देर बाद सिक्के भिखारी को वापस लौटाते हुए कहा – “मेरे दोस्त अब तुम जा सकते हो।” मुल्ला नसरुद्दीन की यह बात सुनकर सराय का मालिक चिल्लाकर बोला – “क्या कहा भाईजान, जा सकते हो ? लेकिन मेरे पैसे तो मुझे मिले ही नही। यह कैसा इन्साफ है ? मैं अपने पैसे लेकर ही रहूँगा। ” मुल्ला नसरुद्दीन ने गम्भीर आवाज में कहा – “भाईजान आपको तो पूरी कीमत मिल चुकी है, आप समझते क्यों नहीं यह तो मामूली सी बात है। उसने तुम्हारे सीख कबाब की खुशबू को सूंघा, बदले में तुमने उसके सिक्कों की खनखनाहट सुन ली। तुम्हारा हिसाब बराबर हो चुका है यह एकदम सच्चा न्याय है, दूध का दूध और पानी का पानी। “