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देवता और दैत्य – God and Devil story in hindi

स्वर्ग में प्रजापति की दो पत्नियाँ थीं, अदिति और दीती। अदिति के लड़के देवता थे और दीती के लड़के दैत्य थे। बचपन से ही उनमें बहुत दुश्मनी थी। वो हमेशा आपस में लड़ते रहते थे। ये सोचकर की इनका झगड़ा कभी खत्म नही होगा प्रजापति ने देवताओं के लिए ऊपर स्वर्ग बनाया और दैत्यों के लिए नीचे पाताल लोक। फिर उसने अपने बच्चों से कहा – “तुम सब आपस में लड़ते रहते हो, तुम इकटठे मत रहा करो। तुम अलग अलग अपने अपने लोकों में रहो।” दैत्यों ने ज़िद की कि उन्हें तो स्वर्ग ही चाहिए। देवताओं ने भी साफ़ साफ़ कह दिया की हम पाताल लोक में बिलकुल भी नहीं रहेंगे। इस तरह देवता और दैत्य लड़ते ही जा रहे थे। प्रजापति ने सोचा की इस समस्या का शीघ्र ही कुछ हल निकालना पड़ेगा। इस लड़ाई से छुटकारा पाने के लिए उसने अपने बच्चों से कहा की देवताओं में से एक और दैत्यों में से भी कोई एक भू लोक पर जाकर रहे और वहाँ अपनी मेहनत से धन कमाए, जो ज्यादा धन कमाएगा उसकी जीत होगी,  जिसकी जीत होगी वही स्वर्ग में जाकर रहेगा और बाकी पाताल लोक में जाकर रहेंगे। इसके लिए देवता और दैत्य दोनों मान गए।

भूलोक में जाने के लिए देवताओं ने अपना एक भाई और दैत्यों ने भी अपना एक भाई चुना और उन दोनों को भूलोक पर भेज दिया। दोनों भूलोक पर पहुंचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा की मनुष्य कैसे जी रहे हैं। दैत्य ने देवता से पूछा – “तुम यहां पर कैसे रहोगे?” देवता ने जवाब दिया “जैसे मनुष्य रहते हैं। मैं मेहनत करके इनकी तरह ही जियूँगा। दैत्य बोला – “तो तुम मेहनत करके जियो मैं तो बिना मेहनत करे ही जियूँगा।”

दोनों मिलकर एक जमींदार के पास गए जिसके पास खेती की बहुत जमीन थी और उससे कुछ काम माँगा। जमींदार ने दोनों को एक एक हल और एक एक जोड़ा बैल दिए। फिर उसने जमीन दिखा कर कहा – “तुम दोनों इस में हल चलाओ।” उन दोनों ने हल चलाना शुरू किया। दैत्य हल चलाने से थोड़ी ही देर में ऊब गया और उसने अपने बैलों को खोल दिया। बैलों को चरने के लिए खुला छोड़कर वो खुद एक पेड़ के नीचे लेट गया और शाम तक सोता रहा।

जब दैत्य उठा तो अँधेरा होने वाला था। देवता तब तक सारे खेत में हल चला चुका था, जो थोड़ा बहुत रह गया था दैत्य ने उठकर उसमें हल चलाया। अब दोनों जमींदार के घर पहुंचे। जमींदार ने एक छोटी सी अँधेरी कोठरी उनको सोने के लिए दी, वो दोनों उसमें सोने के लिए चले गए। जाते हुए उनको जमींदार ने कहा की सुबह आकर मुझे मिलना।

देवता ने दिनभर बहुत मेहनत की थी इसलिए लेटते ही उसे जोरों की नींद आगई। दैत्य तो दिनभर पेड़ के नीचे सोया ही था, उसे नींद कहाँ से आती। वो एक मिनट के लिए भी सो ना सका। सुबह होने पर दोनों कोठरी से बाहर निकले। दैत्य ने देखा की देवता के शरीर पर सोने की धुल चिपटी हुई है। दैत्य के शरीर पर कुछ भी नही था। जमींदार ने आकर कहा की तुम्हारे शरीर पर जो सोना चिपका हुआ है वो तुम्हारा ही है। तुम्हारी मेहनत का ये मेहनताना है, तुम इस सोने को रख सकते हो। इस बात से दैत्य बड़ा ही निराश हुआ, उसने सोचा आज मैं ज्यादा मेहनत करके इस देवता से दोगुना सोना कमाऊँगा।

अगले दिन जमींदार ने हल चलाने के लिए एक और खेत दोनों भाइयों को दिखाया। देवता और दैत्य दोनों ही उसमें हल जोतने लगे। पिछले दिन की तरह ही दैत्य कुछ देर हल चलाने के बाद आलस में आगया और बैलों को खुला चरने छोड़कर एक पेड़ के नीचे लेट गया। दैत्य उस पेड़ के नीचे अँधेरा होने तक सोता ही रहा। उस दिन भी सारा खेत देवता ने ही जोता। घर जाने से पहले दैत्य ने अपने सारे शरीर पर गोंद लगा लिया। उसने सोचा गोंद से बहुत सारा सोना उसके शरीर से चिपक जाएगा। उनके घर पहुँचते ही जमींदार ने दो नांद दिखाते हुआ कहा – “इनमें तुम दोनों अपने बैलों को पानी पिला लो”। एक नांद की तरफ दैत्य ने अपने बैल हांके और दुसरे नांद की तरफ देवता ने। क्योंकि दैत्य के बैलों ने तो दिनभर काम ही नही किया थे इसीलिए वो दो चार घूँट पानी पी कर ही चले गए। लेकिन देवता के बैल बहुत प्यासे थे क्योंकि उन्होंने सारा दिन बहुत मेहनत की थी, इसलिए वो सारा पानी पी गए। नांद में पानी खत्म होने के बाद उसके तल में सोना दिखाई दिया। “यही तुम्हारी मजदूरी है, लेलो” – जमींदार ने देवता से कहा। “और मेरी मजदूरी कहाँ है?” – दैत्य ने पूछा। जमींदार ने कहा – “अगर तेरे बैल मेहनत करते तो वो नांद का सारा पानी पी जाते और तेरी मजदूरी भी नांद में मिलती। पर ना तो तूने मेहनत की और ना ही तेरे बैलों ने तो मैं क्या करूँ।”

स्वर्गलोक में सारे देवता यह सब देख रहे थे। देवताओं ने कहा – “हमारा भाई जीत गया है अतः स्वर्ग हमारा है।” लेकिन दैत्य अब भी नही मान रहे थे। वो बोले – “भूलोक में हल चलाने से थोड़े ही फैसला हो जाएगा, ये तो कोई बात ना हुई। भूलोक के पास कितना बड़ा समुन्द्र है, समुन्द्र में भी मेहनत की जा सकती है। हमें समुन्द्र में मुकाबला करना चाहिए।”

अब प्रजापति ने भूलोक से अपने दोनों लड़कों को बुला लिया और उनसे कहा की तुम दोनों समुन्द्र में जाओ और मछलियाँ पकड़ो, जो ज्यादा मछलियाँ पकड़ेगा उसे ही स्वर्ग मिलेगा और दुसरे को पाताल मिलेगा। देवता और दैत्य अलग अलग नाव में गए और एक एक जाल लेकर मछलियाँ पकड़ने लग गए। इस बार दैत्यों ने अपने भाई को जिताने के लिए एक चाल चली। उनमें से कई दैत्य समुन्द्र में जा घुसे और अपने दैत्य भाई के जाल में मछलियाँ भरने लगे। देवता ने अपना जाल बाहर निकाला तो उसमें बहुत सारी मछलियाँ थीं। उसी समय दैत्य ने अपना जाल खींचा, उसमें तो देवता के जाल से लगभग दस गुना ज्यादा मछलियाँ थीं। दैत्य के जाल को जब बाहर खींचा गया तो बहुत ज्यादा मछलियाँ भरी होने के कारण उनके भार से जाल फट गया और सारी मछलियाँ वापस समुन्द्र में चली गईं।

इस तरह छल कपट से भी दैत्य देवताओं को हरा नही सके और स्वर्ग देवताओं का हुआ और दैत्य पाताल लोक में रहने लगे।

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