आइये शुरू करते हैं Birbal की एक दिलचस्प kahani. एक गांव की चौपाल के चबूतरे पर पाँच भाई बैठे दहाड़े मार-मार कर रो रहे थे। लोग इकट्ठे हो गए। एक आदमी ने उनसे पूछा -“क्यों रो रहे हो भाई?”
पहले तो वो किसी की बात सुनने को तैयार ही नही थे, थोड़ी देर बाद एक भाई ने कहा -“अरे रोए नहीं तो क्या हसें? हमारा बाप हमें अनाथ छोड़ कर चला गया। हमारे लिए कुछ जमीन या ज़ायदाद छोड़कर भी नहीं गया। हम पांच भाई हैं। सभी गांव वाले कहते हैं कि हम पाँचों मंदबुद्धि हैं। हम में से किसी में भी इतनी समझ नहीं है कि हम कुछ काम धंधा करके कमाई कर सकें। हम तो भूखे मर रहे हैं इसलिए रो रहे हैं।”
उस आदमी ने कहा कि भाई कमाई तो काम करने से होगी और काम तुम लोगों को समझ का इस्तेमाल करने से मिलेगा, रोने धोने से कुछ नहीं होगा। अगर तुम लोगों में बुद्धि कम है तो आगरा चले जाओ और बीरबल के साथ रहो। समझ आनी होगी तो बीरबल के साथ रहने से जरूर आ जाएगी।
बीरबल बादशाह अकबर के सबसे चहीते दरबारी थे। पांचों भाई जा पहुंचे आगरा और पता लगाते लगाते बीरबल के घर भी पहुंच गए। उन्होंने बीरबल के पैर पकड़ कर कहा – हे बुद्धिराज हमें अपने साथ रख लीजिए, आप जो काम कहेंगे हम वह करने को तैयार रहेंगे। हम पांचों भाई आपकी खूब सेवा करेंगे। सबसे बड़ा भाई जिसका नाम बिरजू था वह बोला कि लोग कहते हैं काम समझ से मिलता है। हमारे पास तो समझ की ही कमी है। लोग कहते हैं आपके साथ रहने से समझ आजाएगी। बीरबल ने कहा कि ठीक है आप लोग मेरे साथ रह सकते हो। पांचों बहुत खुश हो गए।
अगले दिन बीरबल जब दरबार में जाने के लिए निकले तो पांचों भाई भी उनके साथ साथ चलने लगे। बीरबल ने पूछा – “अरे आप लोग कहां जा रहे हो?”
बिरजू बोला – “हम भी आपके साथ ही चल रहे हैं, आप ही ने तो कहा था हम आपके साथ रह सकते हैं।”
बीरबल सोचने लगे किन मूर्खों के चक्कर में पड़ गया, दरबार में इनका क्या काम। तभी बीरबल को एक तरकीब सूझी। एक नौकर से सात खाली डिब्बे मंगवाए। सातों खाली डिब्बे और सौ सिक्के उन भाइयों को देते हुए बीरबल ने कहा -“इन सौ सिक्कों को सातों डिब्बों में इस तरह से डाल कर रखो कि कोई तुमसे एक से सौ तक चाहे जितने भी सिक्के मांगे उसे सिर्फ एक या अधिक डिब्बे एक साथ दे सको। ध्यान रखना कोई कितने भी सिक्के मांगे तुम्हें उसके लिए कोई डिब्बा खोलने की जरूरत ना पड़े।” यह कहकर बीरबल बादशाह अकबर के दरबार में शामिल होने चले गए।
पांचों भाई इस बात के लिए परेशान थे कि किस डिब्बे में कितने सिक्के रखें। इस पहेली में ऐसे उलझे कि वो पांचो खाना-पीना भी भूल गए। तीसरे पहर तक वे उन डिब्बों और सिक्कों के साथ खिलवाड़ करते रहे, मगर कुछ बात नहीं बनी। बहुत देर बाद उनमें से एक भाई बोला की सबसे पहले मुझे एक सिक्का एक डिब्बे में रख कर दो, जो कोई भी माँगेगा वो कम से कम एक तो माँगेगा ही। दूसरे ने कहा तो फिर 2 सिक्कों का एक डिब्बा भी होना चाहिए, एक सिक्के वाले डिब्बे से 2 सिक्कों की मांग पूरी नहीं हो पाएगी। इस तरह जोड़-तोड़ करके हिसाब लगाने से समस्या धीरे-धीरे सुलझने लगी। एक और दो सिक्कों के डिब्बे मिलाकर 3 सिक्कों की मांग पूरी हो सकती थी लेकिन चार कि नहीं। तो तीसरा डिब्बा 4 सिक्कों का बन गया। अब 6 और 7 की मांग तो इन डिब्बों से पूरी हो रही थी मगर 8 की मांग के लिए एक डिब्बा 8 सिक्कों का बना। फिर ऐसे ही 16 और 32 सिक्कों के डिब्बे बना दिए। 63 सिक्के 6 डिब्बों में बट गए, अब एक डिब्बा और 37 सिक्के बचे। वो 37 सिक्के उन्होंने सातवें डिब्बे में डाल दिए। बीरबल की पहेली हल हो गई और सारे भाई खुशी से नाचने लगे। अब उन्हें अपने भूखे होने का ध्यान आया। तो फिर क्या था, नौकरों पर हुक्म चलाया और खूब जम के स्वादिष्ट खाना खाया।
शाम को जब बीरबल लौट कर आए तो उन्होंने सातों डिब्बे उनके सामने रख दिए और बताया कि हमने समस्या सुलझा ली है। बीरबल ने उनकी पीठ ठोकी और कहा कि अब तुम्हें समझ आ गई है। जब भी कोई मुश्किल समस्या सुलझानी हो तो उसके टुकड़े करो और एक-एक टुकड़ा जोड़ कर देखो। समझ के घोड़े दौड़ाओ मगर लगाम लगाकर। पांचों भाइयों ने बीरबल के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और वापस अपने गांव की ओर निकल पड़े।
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