इस दिलचस्प kahani में आप पढ़िए कैसे एक मछुआरा जंगल में गया और एक बुड्ढे बुढ़िया के जोड़े की जादुई दुनिया में पहुँच गया जहाँ उसकी जान जाते जाते बची।
किसी गांव में एक मछुआरा रहता था। वह रोजाना अपनी नाव में समुंदर में जाता और मछलियां पकड़कर अपना गुजारा किया करता था। अब उसकी नाव पुरानी होने लगी थी और कई जगह से टूट गई। मछुआरे ने एक और नाव बनाने का फैसला किया। वह अपनी नाव बनाने के लिए अच्छी और मोटी लकड़ी की तलाश में जंगल में गया। उसे नाव बनाने के लिए लकड़ी के एक बड़े से बहुत मजबूत लट्ठे की तलाश थी। जंगल में काफी अंदर तक जाने के बाद भी उसे अपनी नाव बनाने लायक कोई लकड़ी नहीं मिली।
कुछ देर बाद आसमान में अचानक बहुत घने काले बादल छाने लगे और वहां अंधेरा ही अंधेरा हो गया। मछुआरा जंगल को अंदर से अच्छी तरह जानता भी नहीं था। अंधेरा होने की वजह से वह रास्ता भटक गया। बारिश भी होने लगी। “मुझे क्या अब सारी रात भूखे पेट इस जंगल में ऐसे ही बारिश में काटनी होगी” – यह सोच कर मछुआरा बहुत घबरा रहा था। तभी अचानक थोड़ी दूर मछुआरे को एक झोपड़ी नजर आई। झोपड़ी के अंदर थोड़ी रोशनी भी थी। झोपड़ी में रोशनी देखकर मछुआरे की जान में जान आई और वो झोपड़ी की तरफ गया।
बहुत देर दरवाजा खटखटाने के बाद एक बूढ़े आदमी ने दरवाजा खोला। मछुआरे ने देखा की एक बुड्ढा और बुढ़िया उस झोपड़ी में रह रहे हैं। बुड्ढे ने दरवाजा खोल कर मछुआरे से पूछा क्या बात है भाई? मछुआरा बोला – “ बाबाजी मैं रास्ता भटक गया हूँ, क्या आप मुझे आज रात के लिए अपने घर में थोड़ी सी जगह दे देंगे?” बुड्ढे ने मछुआरे को अंदर बुला लिया और बताया कि यहाँ से दूर-दूर तक कोई गांव शहर या बस्ती नहीं है। अंदर बुढ़िया खाने के लिए कुछ बना रही थी। बुढ़िया ने मछुआरे से कोई बात नहीं की और बुड्ढे ने भी बुढ़िया से कुछ नहीं बोला। बुड्ढे ने मछुआरे को खाना दे दिया और खाना खाकर मछुआरा लेट गया।
मछुआरे को नींद बिल्कुल भी नहीं आ रही थी। वो यही सोचे जा रहा था कि ये बुड्ढा और बुढ़िया इतने घने जंगल में अकेले कैसे रहते हैं और इनका गुजारा कैसे चलता है। यह दोनों आपस में बातचीत भी नहीं कर रहे हैं इसका क्या भेद है। आधी रात के समय बुड्ढा धीरे से उठा और बिल्ली की तरह आहिस्ता आहिस्ता चलते हुए घर में रखे एक संदूक के पास गया। बुड्ढे ने संदूक खोलकर उसमें से एक टोपी निकाली। मछुआरा यह सब देख रहा था। बुड्ढे ने टोपी को सर पर लगाया और बोला – गिल्ली गिल्ली छू उड़ जा तू। यह मंत्र बोलने पर बुड्ढा वहां से गायब हो गया। फिर बढ़िया उठी और वो भी आहिस्ता आहिस्ता संदूक के पास गई। उसने एक और टोपी निकाली। बुढ़िया ने भी टोपी को अपने सर पर लगाया और बोली – गिल्ली गिल्ली छू उड़ जा तू। बुढ़िया भी गायब हो गई। मछुआरा यह सब देख कर बहुत ही हैरान हुआ।
डरते डरते वह भी संदूक के पास गया। उसने सन्दूक खोला। संदूक में एक और टोपी पड़ी थी। उसने वो टोपी उठाई, अपने सिर पर लगाई और उसी तरह से बोला गिल्ली गिल्ली छू उड़ जा तू। तुरंत उसकी आंखें अपने आप बंद हो गईं और उसे लगा जैसे वो हवा में बहुत तेजी से उड़ा जा रहा है। जब उसकी आंख खुली तो उसने देखा कि वो एक राजमहल के रसोई घर में था। बुड्ढा और बुढ़िया वहीं बड़े आराम से खाना खा रहे थे और गप्पे मार रहे थे। राजमहल की रसोई में सोने और चांदी के बर्तन थे। बुड्ढे और बुढ़िया ने खाना खा कर सोने की थालियों को अपने झोले में डाल लिया। मछुआरे को देख कर बुड्ढा और बुढ़िया चौंक गए और मछुआरे से बोले कि अरे तुम यहां कैसे आ गए? दोनों ने अपनी अपनी टोपियों को सर पर लगाया और बोले – गिल्ली गिल्ली छू उड़ जा तू। बुड्ढा और बुढ़िया वहां से भी गायब हो गए। उनके जाने के बाद मछुआरे ने सोचा कि चलो मैं भी खाना खा लेता हूँ। मछुआरे ने वहाँ पेट भर कर खाना खाया। खाना खाकर उसे बहुत नींद आने लगी क्योंकि वो रात भर सो नहीं पाया था, बुड्ढे और बुढ़िया के बारे में सोचता रहा था। पेट भर खाना खाकर उसे इतनी जोर की नींद आई कि वो वहीं सो गया।
सुबह होने पर राजा के नौकर रसोई-घर में आए। उन्होंने देखा कि एक आदमी वहाँ सो रहा है। उन्होंने मछुआरे को बांध दिया और बाँधकर राजा के पास ले गए। राजा से उन्होंने कहा की महाराज आज हमने चोर को पकड़ लिया, यही वह चोर है जो रोजाना हमारी रसोई से खाना और सोने चांदी के बर्तन चुरा कर ले जाता है। राजा ने कहा इतने खतरनाक चोर को जिंदा नहीं रहने देना चाहिए और हुक्म दिया की इसे किसी खंभे से बांधकर इसके चारों तरफ आग लगाकर जिंदा जला दो। मछुआरे को एक चौराहे पर ले जाया गया जहां एक बहुत बड़ा लकड़ी का खंबा गड़ा हुआ था। उसके साथ मछुआरे को बांध दिया गया और चारों तरफ आग जलाने के लिए लकड़ियां रख दी गईं। सारे शहर के लोग यह नजारा देखने के लिए वहीं आकर चारों तरफ खड़े हो गए। मछुआरे ने सोचा अब तो मैं मरने ही वाला हूं अपनी जान बचाने के लिए एक आखरी कोशिश करके देखता हूं। तभी राजा भी वहां आ गया मछुआरा राजा से बोला महाराज मरने वाले की एक आखरी इच्छा पूरी की जाती है आप भी मेरी आखिरी इच्छा सुन लीजिए। राजा ने कहा बोलो, हम तुम्हारी आखरी इच्छा पूरी करेंगे। मछुआरा बोला मेरी टोपी मेरे सर पर लगा दीजिए मुझे वह बहुत पसंद है, मैं अपनी टोपी के साथ ही मरना चाहता हूँ। राजा ने कहा ठीक है, उसने सैनिकों को हुक्म दिया की मछुआरे की टोपी लाकर इसके के सिर पर रख दो। एक सैनिक ने टोपी ला कर मछुआरे के सिर पर रख दी। मछुआरे को बुड्ढे बुढ़िया का मंत्र याद था। टोपी ओढ़ते ही मछुआरा बोला – गिल्ली गिल्ली छू उड़ जा तू। यह बोलते ही वह तो एकदम वहां से गायब हो गया। उसके साथ वह मोटी लकड़ी भी गायब हो गई जिसके साथ उसे बांधा गया था। शहर के लोगों को लगा कि यह चोर कोई आदमी नहीं है बल्कि कोई भूत है।
मछुआरा पहाड़ के पास पहुंच गया और उसे समुंदर भी नजर आने लगा। उसका का घर समुंदर के पास ही था। वो अभी तक रस्सी से बंधा हुआ था। उसे एक आदमी जाता हुआ नजर आया, उसने उसे आवाज लगाई और अपनी रस्सी खोलने को कहा। आदमी बोला अरे तुम्हें इस खंभे के साथ कौन बांध गया? मछुआरा बोला अरे भाई यह बहुत लंबी बात है तुम्हें क्या बताउं, तुम बस मेरी ये रस्सियां खोल दो। उस आदमी ने मछुआरे को खोल दिया। मछुआरे ने देखा जिस लकड़ी से उसको बांधा गया था वह बहुत मजबूत और नाव बनाने के लिए बिल्कुल उपयुक्त थी। मछुआरा खुश हो गया और बोला अरे वाह मुझे तो ऐसी ही लकड़ी की तलाश थी। फिर उसने उस लकड़ी से अपनी नई नाव बना ली।
Bahot hi behtarin kahani hai post karne ke liye aap ka dhanyawad.
Comment *Iss kahani se hame yae sikhana chaeiya dhiral se socho