एक राजा ने बड़ी लगन से तरह तरह के बहुत कीमती मणि – रत्नों को इकट्ठा किया। वो बड़े घमंड से दूसरों को अपने कीमती रत्न दिखाता था। राजा की बहुत वाह वाही होती थी की कितनी मेहनत से राजा ने इतने कीमती रत्न इकट्ठे किये हैं।
एक दिन कहीं से एक महात्मा वहाँ आए और महल की एक एक चीज को बड़े ध्यान से देखने लगे। राजा ने सोचा की महात्मा उसके कीमती रत्नों को ही देखने आए हैं। राजा उन्हें अपने महल के खजाने में ले गया। वहाँ ढेरों हीरे, मोती, पन्ने, पुखराज आदि रखे हुए थे। राजा ने सोचा था की इतने कीमती रत्नों को देखकर महात्मा की आँखें खुली की खुली रह जाएंगी और वो हैरान हो जाएंगे लेकिन महात्मा ने उन रत्नों को ऐसे ही देखा जैसे कोई कांच के मामूली टुकड़ों या मिटटी के ढेलों को देखता है।
राजा उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए खुद एक एक रत्न की कीमत बताने लगा। यह सब सुनकर महात्मा ने राजा से पूछा – “महाराज इन रत्नों से आपको और राज्य को बड़ी आमदनी होती होगी”। राजा ने कहा – “महात्मा जी आमदनी कहाँ से होगी मुझे तो इन कीमती रत्नों को रखने के लिए बहुत खर्च करना पड़ता है। इनकी रक्षा के लिए मैने बहुत से पहरेदार रखे हुए हैं और इनकी देखभाल का काम मेरे सबसे विश्वसनीय लोग करते हैं। इन रत्नों पर तो मेरा बहुत खर्चा होता है”। इस पर महात्मा जी बोले – “इस प्रकार तो ये तो बिलकुल व्यर्थ की चीजें हैं, आपने इन्हें क्यों रखा हुआ है?”। राजा को महात्मा की यह बात बहुत बुरी लगी, जिस चीज की राजा बढ़ाई सुनना चाहता था उस चीज की इतनी बुराई सुनकर वो झुंजला उठा।
राजा बोला – “अरे साधू जी आपको कुछ पता नहीं है, आपको इतने कीमती रत्न दिखाना तो ऐसे है जैसे भैंस के आगे बीन बजाना। आपको इन रत्नों का महत्व बिल्कुल नही पता इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। इन बड़े बड़े हीरों को देखिये, ये मामूली पत्थर नही हैं, बहुत कीमती हीरे हैं। ऐसे कीमती हीरे कहीं देखने को भी नही मिलते। कम से कम आपको तो कभी देखने को ना मिलते, आपने तो कभी सपने में भी नही सोचा होगा इनके बारे में”। महात्मा फिर शांत भाव से बोले – “महाराज गुस्सा ना कीजिए, मैंने इससे भी बड़े और मूल्यवान रत्न देखे हैं। यदि आप देखना चाहें तो चलिए मैं दिखाता हूँ आपको।” यह कहकर महात्मा महल से बाहर की ओर चल दिए। राजा को इस बात पर बिलकुल विश्वास नही हुआ, वो अपनी आँखों से इतने कीमती रत्नों को देखना चाहता था। राजा भी महात्मा के साथ चल दिया।
महात्मा और राजा दोनों एक गरीब की झोपडी पर पहोंचे। वहाँ एक बूढ़ी विधवा औरत आटा पीसने के लिए चक्की चला रही थी। महात्मा ने चक्की की ओर इशारा करते हुए कहा – “महाराज चक्की के इन बड़े बड़े दो पत्थरों को देखिये, इनके आगे आपके पत्थर दो कौड़ी के हैं। कोई चीज आदमी के जितने काम की होती है वो उतनी ही कीमती होती है। यह विधवा इन्ही पत्थरों की मदद से अनाज पीसती है, अपने परिवार का और अपना पेट भरती है। इसके विपरीत आप अपने पत्थरों को देखिये, वो बेकार पड़े रहते हैं, किसी के काम नही आते और उन्हें संभाल कर रखने के लिए आपको बहुत अधिक खर्चा भी करना पड़ता है।
महात्मा की इन बातों से राजा का भ्रम और अहंकार दोनों ही दूर हो गए।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की कीमती चीजों जैसे की हीरे – जवाहरात आदि का कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। वास्तव में जो चीज हमारे लिए जितनी ज्यादा उपयोगी होती है वो उतनी ही ज्यादा कीमती होती है ।
अच्छी लेखनी