Tenali Rama – सर्दियों का मौसम था, बहुत सर्दी पड़ रही थी। कड़कड़ाती सर्दी में महाराजा कृष्णदेवराय अपने खास दरबारियों के साथ कहीं जा रहे थे। सभी ने ऊन के भारी भारी गरम कपड़े पहने हुए थे मगर फिर भी सभी सर्दी से कांप रहे थे। रास्ते में चलते हुए महाराज की नजर एक भिखारी पर पड़ी जिसके शरीर पर फटे पुराने कपड़े थे। उसका शरीर पूरा ढका हुआ भी नहीं था। भूख से उसका पेट पूरा अंदर तक धंसा हुआ था और वो सिर्फ़ हड्डियों के एक ढाँचे की तरह लग रहा था।
भिखारी को देखकर महाराज ने रथ रुकवाया, भिखारी के पास जाकर अपना गरम कीमती शाल उसको ओढ़ा दिया ताकि उसकी सर्दी रुक जाए। यह देखकर राजपुरोहित और सभी दरबारी महाराज की दयालुता की प्रशंसा करने लगे और महाराज की जयजयकार करने लगे। लेकिन यह सब देखकर भी तेनाली चुपचाप खड़ा था। राजपुरोहित ने महाराज के सामने ही तेनाली से पूछा – “क्या बात है तेनाली आपको महाराज की दयालुता देखकर खुशी नहीं हुई?” तेनाली तब भी चुप रहा। महाराज को भी तेनाली की चुप्पी बुरी लगी।
महल में आकर महाराज ने तेनाली की चुप्पी के बारे में बहुत सोचा। अगले दिन दरबार लगा तो सबसे पहले महाराज ने तेनाली से पूछा – “क्यों तेनाली हमें कल की अपनी चुप्पी के बारे में नहीं बताओगे, जब हमने इतना कीमती शाल उस भिखारी को दिया तो सब लोगों ने हमारी बहुत प्रशंसा की परंतु तुम चुपचाप ही रहे। हमें इसके बारे में नही बताओगे क्या?” तेनाली अब भी चुप ही रहा। तेनाली के इस तरह चुप रहने के कारण महाराज को गुस्सा आ गया। गुस्स्से में महाराज ने तेनालीराम को एक वर्ष के लिए देश निकाले की सज़ा देदी और कहा – “तुम अपने साथ अपने परिवार के अलावा केवल एक चीज़ और लेजा सकते हो। बोलो तुम क्या लेजाना चाहोगे?” तेनाली बोला – “महाराज आपने जो शाल उस भिखारी को दिया था बस मुझे वो ही शाल दे दीजिए”। महाराज बोले – “वो शाल आपको हम कैसे दें? भिखारी को दी हुई चीज हम वापस कैसे मांगेंगे? तुम दूसरा शाल लेलो।” लेकिन तेनाली ने कहा – “नहीं महाराज, मुझे तो बस वही शाल चाहिए, मुझे कोई और शाल बिलकुल नहीं चाहिए”।
“भिखारी को शाल सहित दरबार में लेकर आओ” – महाराज ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया। कुछ ही देर में दो सिपाही भिखारी को लेकर दरबार में हाजिर हुए लेकिन भिखारी के पास वो शाल नहीं था। महाराज ने शाल के बारे में पूछा तो भिखारी चुप रहा, महाराज ने फिर थोड़ी सख्ती से भिखारी से पुछा – “मैंने तुम्हे कल जो शाल दिया था वो कहाँ है?” भिखारी ने डरते डरते कहा – “महाराज मैंने वो शाल बेचकर उसके बदले में आटा खरीद लिया”। यह सुनते ही महाराज सहित सभी दरबारी हैरान हो गए की इतने कीमती शाल को इस भिखारी ने आटे के बदले में बेच दिया।
महाराज ने अपने गुस्से को थोड़ा काबू में करते हुए भिखारी को वहाँ से जाने का आदेश दिया। फिर महाराज ने तेनालीराम से पुछा – “बताओ तेनाली तुम कल चुप क्यों थे?” तेनाली ने कहा – “महाराज मेरी चुप्पी का जवाब तो आपको मिल जाना चाहिए था। उस भिखारी को सबसे पहले तो रोटी चाहिए थी क्योंकि वो बहुत भूखा था और उसके लिए इतने कीमती शाल की कीमत भी कुछ नहीं थी। इसीलिए उसने सबसे पहले अपना पेट भरने के लिए उस शाल को बेच दिया। में इसलिए चुप था की आपने अपना शाल देकर कोई समझदारी का काम नहीं किया। आप उस भिखारी को रोटी देते चाहे इतना महंगा शाल न देकर कोई और सस्ता गरम कपड़ा दे देते।” अब महाराज को तेनालीराम की बुद्धिमत्ता समझ आगई। तेनालीराम तो था ही बहुत बुद्धिमान।