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Bazar ki Sair - Tenalirama hindi story

बाजार की सैर – Tenalirama funny story in hindi

एक दिन सम्राट कृषदेवराय सुबह से ही बहुत परेशान और गुस्से में थे। उनकी अँगूठी का एक बहुत मूल्यवान भाग्यशाली हीरा महल में कहीं गिर गया था। सैनिकों ने महल का कोना कोना छान मारा लेकिन हीरा कहीं नही मिला।महाराज अपने हीरे के लिए बहुत चिंतित थे। वो हीरा एक तपस्वी साधु ने सम्राट को दिया था और आशीर्वाद दिया था कि जब तक यह हीरा तुम्हारे पास रहेगा तुम विजय प्राप्त करते रहोगे।

महाराज हीरे को शीघ्रातिशीघ्र खोज लेना चाहते थे। लेकिन सुबह से शाम होगई, हीरा हाथ नहीं आया। शाम को महाराज। ने घोषणा कर दी कि जो कोई भी हीरा ढूंढेगा उसे मुँह मांगा इनाम दिया जाएगा। अगली सुबह महल में सफाई करते समय एक सफाई कर्मचारी को हीरा मिल गया। उसने सफाई छोड़ तुरंत दुड़की लगाई और हीरा लेकर सीधा महाराज के सामने उपस्थित हो गया। हीरा देख कर महाराज का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

तुमने यह हीरा ढूंढ़कर आज हमें प्रसन्न कर दिया है और साथ ही साथ अपनी वफादारी का भी परिचय दिया है। यदि तुम चाहते तो हीरा लेकर चुपचाप यहाँ से भाग सकते थे। हमारी घोषणा के अनुसार तुम्हें मुँह मांगा इनाम जरूर दिया जाएगा। कहो क्या चाहिए – महाराज सफाईकर्मी से बोले।
सफाईकर्मी सोचने लगा। उसकी कुछ समझ नही आ रहा था कि महाराज से क्या मांगे। थोड़ा समय लेकर वो बोला कि महाराज मेरी कुछ समझ में नही आ रहा है, कृपया मुझे एक दिन का समय दीजिये। जो भी मुझे मांगना है मैं कल मांगूंगा। महाराज ने उसकी बात मान ली।

सफाईकर्मी ने खुशी खुशी में यह बात अपने साथियों को बताई। अब तो यह बात जंगल में आग की तरह फैलने लगी। जल्दी ही राजमहल के सभी पदाधिकारियों और कर्मचारियों को पता लग गया कि हीरा मिल गया है और कल सफाईकर्मी को उसका मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा।

मंत्री के कानों तक जब यह बात पहुँची तो उसने सेनापति के साथ मिलकर तेनाली को अपमानित करने की योजना बनाई। सेनापति ने सफाईकर्मी को बुलाकर स्वर्णमुद्राओं से भरा एक थैला दिया और कहा कि कल दरबार में तुम महाराज से तेनालीराम की पीठ पर बैठकर बाज़ार में घूमने की मांग करोगे। साथ में सेनापति ने उसे धमकाया की यदि ऐसा नहीं किया तो अपनी जान से हाथ धोने पड़ेंगे।

तेनालीराम अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर बड़ी से बड़ी समस्या को आसानी से हल कर लेता था इसलिए वो महाराज का बहुत प्रिय हो गया था। महाराज तेनाली को बहुत अधिक मान-सम्मान देते थे। इसी वजह से मंत्री और सेनापति तेनाली से बहुत ईर्ष्या करने लगे थे तथा हर समय तेनालीराम का अपमान करने और उसे नीचा दिखाने के अवसर की तलाश में रहते थे।

अगले दिन दरबार लगा, सफाईकर्मी अपनी मांग के लिए उपास्थित हुआ। वो सेनापति की धमकी से बहुत डरा हुआ था। मजबूरी में उसने सेनापति के कहे अनुसार ही महाराज से मांग की कि मैं तेनालीराम की पीठ पर बैठकर बाजार की सैर कर करना चाहता हूँ। इतनी अजीब मांग सुनकर महाराज को सफाईकर्मी पर बहुत गुस्सा आया। लेकिन क्या करते, महाराज अपने वचन से मजबूर थे।

महाराज ने तेनालीराम को अपने पास बुलाया और पूछा कि बताओ तेनाली मैं क्या करूँ? तेनालीराम मुस्कुराते हुए बोला – महाराज आप बिलकुल चिन्ता ना करें। यदि वो मेरी पीठ पर बैठकर सैर करना चाहता है तो करने दीजिए। अब महाराज थोड़े निशचिंत हुए।

मंत्री और सेनापति बड़े खुश हो रहे थे। सोच रहे थे कि अब तो बड़ा मजा आएगा। तेनाली की ऐसी बेइज्जती होगी कि जीवन भर याद रखेगा। सम्राट तेनाली से बोले कि तेनाली तुमने मेरे वचन की लाज रखी है, तुम्हारा धन्यवाद। सफाईकर्मी से महाराज ने कहा कि तुम तेनाली की पीठ पर बैठ सकते हो।

तेनालीराम ने आगे आकर सफाईकर्मी को बुलाया और कहा आओ भाई मेरी पीठ पर बैठ जाओ। सफाई करने वाला खुश होकर आगे आया। उसने तेनालीराम के गले में अपनी बाहें डालीं और पीठ पर लटक गया। तभी तेनाली जोर से चिल्लाया और बोला मेरे गले से अपने हाथ हटाओ, मेरे गले में कई दिन से बहुत दर्द है। तुमने मेरी पीठ पर सैर करने की माँग की है तो पीठ पर बैठ जाओ लेकिन मेरे गले को छूना भी मत।

तेनालीराम की ये बात सुनते ही मंत्री और सेनापति के खिले हुए चेहरे मुरझाने लगे। दोनों मायूसी से कभी तेनालीराम को देखते तो कभी महाराज को। तभी तेनाली गुस्से में सफाईकर्मी से बोला पीठ पर बैठते हो या नहीं। 
ऐसे पीठ पर कैसे बैठा जा सकता है – सफाईकर्मी बोला।
तेनाली ने सफाईकर्मी को डपटा और पूछा तो फिर बताओ किसके कहने पर तुमने मेरी पीठ पर सैर करने की मांग की थी? सफाईकर्मी घबरा कर रोने लगा। उसने महाराज को बसबकुछ सच सच बता दिया। सम्राट सेनापति और मंत्री पर बहुत गुस्सा हुए और दोनों को पाँच- पाँच साल कैद की सजा सुना दी।

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